“क्या पानी सचमुच आकाश से आया था? पृथ्वी पर जल का अनसुलझा रहस्य”


हमारी पृथ्वी पर पानी कहाँ से आया:-

पृथ्वी पर जीवन का आधार “पानी” है। बिना पानी के न तो मानव जीवित रह सकता है, न ही पशु-पक्षी, न ही पेड़-पौधे और न ही सूक्ष्मजीव। पानी को ही जीवन का पर्याय माना गया है। विज्ञान के अनुसार भी पानी पृथ्वी के निर्माण और जीवन की उत्पत्ति दोनों में सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर यह पानी पृथ्वी पर आया कहाँ से? क्या यह पृथ्वी के जन्म से ही यहाँ था, या फिर किसी बाहरी स्रोत से आया? आइए, इस रहस्यमयी प्रश्न का उत्तर वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ऐतिहासिक मान्यताओं के आधार पर समझने का प्रयास करते हैं।


1. पृथ्वी का निर्माण और प्रारंभिक अवस्था:-

लगभग 4.5 अरब वर्ष पहले हमारी पृथ्वी का निर्माण हुआ था। उस समय पृथ्वी एक आग का गोला थी, जिसमें चारों ओर लावा, धूल और गैसें फैली हुई थीं। इतनी गर्म सतह पर किसी भी प्रकार के तरल पदार्थ का बने रहना संभव नहीं था। धीरे-धीरे पृथ्वी ठंडी हुई और सतह पर ठोस परतें बनने लगीं। लेकिन इस शुरुआती अवस्था में यहाँ पानी नहीं था।

विज्ञान मानता है कि पृथ्वी पर पानी बाद में आया। सवाल यही है कि यह पानी कहाँ से आया और किस प्रकार जमा होकर महासागर, नदियाँ, झीलें और हिमनद (Glaciers) बने।


2. पानी की उत्पत्ति से जुड़ी प्रमुख वैज्ञानिक धारणाएँ:-

(क) धूमकेतु और क्षुद्रग्रह सिद्धांत

कई वैज्ञानिक मानते हैं कि पानी पृथ्वी पर धूमकेतुओं (Comets) और क्षुद्रग्रहों (Asteroids) के टकराने से आया।

  • धूमकेतु बर्फ और धूल के मिश्रण से बने होते हैं। जब वे पृथ्वी से टकराए तो बड़ी मात्रा में बर्फ पिघलकर पानी में बदल गई।
  • इसी तरह क्षुद्रग्रहों में भी हाइड्रेटेड खनिज (hydrated minerals) पाए जाते हैं, जिनसे टकराने पर जल के अणु बने और पृथ्वी पर जमा होते गए।

यह प्रक्रिया लाखों-करोड़ों वर्षों तक चलती रही, जिससे महासागरों का निर्माण हुआ।

(ख) ज्वालामुखीय उत्सर्जन सिद्धांत

एक और मान्यता यह है कि पानी पृथ्वी के अंदर से निकला।

  • पृथ्वी के भीतर हाइड्रोजन और ऑक्सीजन जैसे गैसें मौजूद थीं।
  • जब ज्वालामुखी फटे तो बड़ी मात्रा में जलवाष्प वातावरण में फैली।
  • यही जलवाष्प ठंडी होकर बारिश के रूप में गिरी और धीरे-धीरे पृथ्वी पर झीलें और महासागर बने।

यह प्रक्रिया आज भी जारी है। वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी के अंदर मौजूद चट्टानों में इतनी “बाउंड वॉटर” (Bound Water) यानी जल-बद्धता है, जो सतह पर मौजूद महासागरों के पानी से भी कई गुना अधिक हो सकती है।

(ग) सौर मंडल से विरासत सिद्धांत

कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि जब सौर मंडल का निर्माण हुआ, उसी समय से पानी की बर्फ भी इसमें मौजूद थी। पृथ्वी जब बनी, तब उस पर यह बर्फ जमा रही और बाद में पिघलकर तरल पानी में बदल गई।


3. पानी की रासायनिक उत्पत्ति:-

पानी का रासायनिक सूत्र H₂O है। इसका मतलब है कि यह दो हाइड्रोजन और एक ऑक्सीजन परमाणु से बना है।

  • हाइड्रोजन ब्रह्मांड का सबसे प्राचीन और प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला तत्व है।
  • ऑक्सीजन भी तारों के अंदर होने वाली नाभिकीय प्रतिक्रियाओं से उत्पन्न हुआ।

जब यह दोनों तत्व आपस में मिले, तब पानी के अणु बने। इसलिए वैज्ञानिक मानते हैं कि पानी पृथ्वी के बाहर भी सर्वत्र मौजूद है। यही कारण है कि आज मंगल ग्रह, यूरोपा (बृहस्पति का उपग्रह), एनसेलाडस (शनि का उपग्रह) और अन्य ग्रहों पर भी बर्फ या जलवाष्प के प्रमाण मिले हैं।


4. प्राचीन भारतीय दृष्टिकोण:-

भारतीय सभ्यता में भी पानी को अत्यंत पवित्र माना गया है।

  • वेदों में “अपः” शब्द का प्रयोग जल के लिए हुआ है और इसे जीवन का आधार कहा गया है।
  • पुराणों में वर्णन है कि प्रारंभ में केवल जल ही जल था, उसी से पृथ्वी और जीवन की उत्पत्ति हुई।
  • महाभारत और उपनिषदों में भी जल को पंचतत्वों (आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी) में प्रमुख स्थान दिया गया है।

इस दृष्टिकोण से भी पानी को आदि तत्व माना गया है, जो सृष्टि के साथ ही मौजूद था।


5. पानी का वितरण और महत्व:-

आज पृथ्वी की सतह का लगभग 71% भाग पानी से ढका हुआ है

  • इसमें से 97% खारा पानी (महासागर) है।
  • केवल 3% मीठा पानी है, जिसमें से अधिकतर बर्फ और ग्लेशियरों में जमी हुई अवस्था में है।
  • पीने योग्य पानी मात्र 1% से भी कम है।

यानी पानी की उत्पत्ति जितनी रहस्यमयी है, उसका संरक्षण उतना ही आवश्यक है।


6. वैज्ञानिक खोजें और प्रमाण:-

  • नासा के वैज्ञानिकों ने शोध करके पाया कि पृथ्वी के महासागरों का “हाइड्रोजन आइसोटोप” (Hydrogen Isotope Ratio) क्षुद्रग्रहों से मेल खाता है। इसका मतलब यह हुआ कि पानी का एक बड़ा हिस्सा क्षुद्रग्रहों की टक्कर से आया।
  • यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के “रोसेटा मिशन” ने यह साबित किया कि सभी धूमकेतु एक जैसे नहीं होते। कुछ धूमकेतुओं का पानी पृथ्वी के महासागर के पानी से बिल्कुल अलग होता है। इसलिए केवल धूमकेतु ही पानी का स्रोत नहीं हो सकते।
  • जापान और अमेरिका के शोधकर्ताओं ने हाल ही में खोज की है कि पृथ्वी की गहराई में “रिंगवुडाइट” (Ringwoodite) नामक खनिज में बड़ी मात्रा में पानी बंद है। यह सिद्ध करता है कि पानी का एक बड़ा हिस्सा पृथ्वी के अंदर से ही निकला होगा।

7. दार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण:-

पानी सिर्फ भौतिक पदार्थ ही नहीं, बल्कि जीवन और चेतना का प्रतीक भी है। भारतीय परंपरा में गंगा, यमुना, सरस्वती जैसी नदियों को देवी का रूप माना गया है।

  • पानी शुद्धि, जीवन और अमरत्व का प्रतीक है।
  • इसे संस्कृत में “जीवन” और अंग्रेज़ी में “Elixir of Life” यानी “अमृत” कहा गया है।
  • यह मान्यता भी है कि जल सृष्टि का मूल कारण है और उसी से जीवन की हर इकाई उत्पन्न होती है।

8. निष्कर्ष

पृथ्वी पर पानी की उत्पत्ति का रहस्य अभी भी पूरी तरह सुलझा नहीं है। लेकिन इतना निश्चित है कि इसके बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं।

  • वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो पानी का एक हिस्सा क्षुद्रग्रहों और धूमकेतुओं से आया और दूसरा हिस्सा पृथ्वी के अंदर से निकला।
  • दार्शनिक दृष्टि से देखें तो जल को सृष्टि का मूल तत्व माना गया है।

इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि पानी केवल एक प्राकृतिक संसाधन ही नहीं, बल्कि जीवन और संस्कृति की धड़कन है। हमें इसे बचाना, सम्मान देना और आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित करना ही सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।


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